kirtan sohila hindi

सोहिला रागु गउड़ी दीपकी महला 1

सतिगुर प्रसादि

जै घरि कीरति आखीऐ करते का होइ बीचारो ॥
तितु घरि गावहु सोहिला सिवरिहु सिरजणहारो ॥1॥

तुम गावहु मेरे निरभउ का सोहिला ॥
हउ वारी जितु सोहिलै सदा सुखु होइ ॥1॥ रहाउ ॥

नित नित जीअड़े समालीअनि देखैगा देवणहारु ॥
तेरे दानै कीमति ना पवै तिसु दाते कवणु सुमारु ॥2॥

स्मबति साहा लिखिआ मिलि करि पावहु तेलु ॥
देहु सजण असीसड़ीआ जिउ होवै साहिब सिउ मेलु ॥3॥

घरि घरि एहो पाहुचा सदड़े नित पवंनि ॥
सदणहारा सिमरीऐ नानक से दिह आवंनि ॥4॥1॥

रागु आसा महला 1 ॥
छिअ घर छिअ गुर छिअ उपदेस ॥

गुरु गुरु एको वेस अनेक ॥1॥
बाबा जै घरि करते कीरति होइ ॥

सो घरु राखु वडाई तोइ ॥1॥ रहाउ ॥
विसुए चसिआ घड़ीआ पहरा थिती वारी माहु होआ ॥

सूरजु एको रुति अनेक ॥
नानक करते के केते वेस ॥2॥2॥

रागु धनासरी महला 1 ॥
गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती ॥

धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती ॥1॥
कैसी आरती होइ ॥

भव खंडना तेरी आरती ॥
अनहता सबद वाजंत भेरी ॥1॥ रहाउ ॥

सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तोही ॥
सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोही ॥2॥

सभ महि जोति जोति है सोइ ॥
तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ ॥
गुर साखी जोति परगटु होइ ॥
जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥3॥

हरि चरण कवल मकरंद लोभित मनो अनदिनो मोहि आही पिआसा ॥
क्रिपा जलु देहि नानक सारिंग कउ होइ जा ते तेरै नाइ वासा ॥4॥3॥

रागु गउड़ी पूरबी महला 4 ॥
कामि करोधि नगरु बहु भरिआ मिलि साधू खंडल खंडा हे ॥
पूरबि लिखत लिखे गुरु पाइआ मनि हरि लिव मंडल मंडा हे ॥1॥

करि साधू अंजुली पुनु वडा हे ॥
करि डंडउत पुनु वडा हे ॥1॥ रहाउ ॥

साकत हरि रस सादु न जाणिआ तिन अंतरि हउमै कंडा हे ॥
जिउ जिउ चलहि चुभै दुखु पावहि जमकालु सहहि सिरि डंडा हे ॥2॥

हरि जन हरि हरि नामि समाणे दुखु जनम मरण भव खंडा हे ॥
अबिनासी पुरखु पाइआ परमेसरु बहु सोभ खंड ब्रहमंडा हे ॥3॥

हम गरीब मसकीन प्रभ तेरे हरि राखु राखु वड वडा हे ॥
जन नानक नामु अधारु टेक है हरि नामे ही सुखु मंडा हे ॥4॥4॥

रागु गउड़ी पूरबी महला 5 ॥
करउ बेनंती सुणहु मेरे मीता संत टहल की बेला ॥

ईहा खाटि चलहु हरि लाहा आगै बसनु सुहेला ॥1॥
अउध घटै दिनसु रैणारे ॥

मन गुर मिलि काज सवारे ॥1॥ रहाउ ॥
इहु संसारु बिकारु संसे महि तरिओ ब्रहम गिआनी ॥

जिसहि जगाइ पीआवै इहु रसु अकथ कथा तिनि जानी ॥2॥
जा कउ आए सोई बिहाझहु हरि गुर ते मनहि बसेरा ॥

निज घरि महलु पावहु सुख सहजे बहुरि न होइगो फेरा ॥3॥
अंतरजामी पुरख बिधाते सरधा मन की पूरे ॥

नानक दासु इहै सुखु मागै मो कउ करि संतन की धूरे ॥4॥5॥

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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